भारतीय दर्शन का परिचय, वेदों से लेकर ओशो तक, भारतीय दर्शन के विकास, उसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और प्रमुख विचारों पर चर्चा की गई है। भारतीय दर्शन की गहराई और विविधता को समझने के लिए इसे महत्वपूर्ण माना गया है।
भारतीय दर्शन (Indian Philosophy) का अध्ययन करना आवश्यक है क्योंकि यह मानवता के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल हमारे परंपराओं को समझने में मदद करता है बल्कि विश्व दर्शन के इतिहास को भी दर्शाता है।
- भारतीय दर्शन की तुलना पश्चिमी दर्शन से करना आवश्यक है, क्योंकि यह हमें विभिन्न संस्कृतियों की दृष्टि को समझने में मदद करता है।
- भारतीय दर्शन की शुरुआत और इसके विकास की प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है। यह हमें विभिन्न दार्शनिक विचारों के बीच संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
- भारतीय दर्शन के प्रमुख तत्वों को समझना आवश्यक है, जैसे आत्मा का अस्तित्व और पुनर्जन्म का सिद्धांत। ये सभी विचार हमारे दैनिक जीवन में भी प्रासंगिक हैं।
भारतीय दर्शन का आरम्भ वेदों के युग से होता है, जो लगभग 5000 से 6000 ईसा पूर्व के बीच रचित माने जाते हैं। वेदों को विभिन्न ऋयों ने सैकड़ों वर्षों में एकत्रित किया और इसे वेद व्यास के नाम से जाना जाता है।
- वेदों में परंपरागत पूजा और यज्ञ की विधियों का विवरण मिलता है। प्रारंभिक वेदों में दैवीयता की व्याख्या में कुछ भ्रम देखने को मिलता है।
- वेदों में चार भाग होते हैं: संहित, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद। उपनिषद वेदों का अंतिम भाग हैं और इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।
- उपनिषदों में आत्मा, मोक्ष और पुनर्जन्म के सिद्धांत स्पष्ट रूप से वर्णित हैं। ये विचार भारतीय दर्शन में गहनता और गहराई लाते हैं।

भारतीय दर्शन में अद्वितीयता और विविधता का अन्वेषण किया गया है। इसमें नास्तिक और आस्तिक दार्शनिकताएँ शामिल हैं, जो हमारे विचारों को प्रभावित करती हैं।
- उपनिषदों में बृह्मा की परिभाषा और निरगुण का महत्व बताया गया है। यह बताता है कि बृह्मा का स्वरूप किसी विशेष रूप में नहीं है।
- भारतीय दर्शन में नास्तिकता की परिभाषा और इसके अंतर्गत आने वाली तीन प्रमुख धाराएँ जैसे चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन की चर्चा की गई है।
- आस्तिकता के अंतर्गत छः दार्शनिकताएँ आती हैं, जो वेदों को प्रमाण मानती हैं। इसमें सांख्य और योग दार्शनिकताएँ प्रमुख हैं।
भारतीय दर्शन में छह प्रमुख दर्शन होते हैं, जिन्हें शत दर्शन कहा जाता है। ये दर्शन सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत के रूप में समूहित होते हैं।
- न्याय और वैशेषिक दर्शन का एक-दूसरे के साथ सहयोग होता है, जिसमें न्याय अधिकतर ज्ञान के सिद्धांत पर ध्यान देता है।
- मीमांसा और वेदांत का महत्व भारतीय दर्शन में अत्यधिक है, क्योंकि ये वेदों के गहन अध्ययन पर आधारित हैं।
- सांख्य दर्शन और योग दर्शन का विकास प्राचीन भारत में हुआ था, जहाँ ये दर्शन जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
भारतीय दर्शन में उपनिषद, गीता और ब्रह्मसूत्र का गहरा महत्व है। ये ग्रंथ न केवल धार्मिक हैं बल्कि ज्ञान और आत्मा के अस्तित्व को समझाने में भी सहायक हैं।
- गीता को भारत में सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। यह सरल भाषा में लिखी गई है, जो इसे आम जन के लिए समझने योग्य बनाती है।
- आदिगुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत का विस्तार किया। उनके विचारों ने भारतीय दार्शनिकों को कई उत्तर खोजने में चुनौती दी है।
- रामानुजाचार्य ने शंकराचार्य की विचारधारा को चुनौती दी। उन्होंने विशेष अद्वैतवाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो भक्ति के मार्ग को खोलने का प्रयास करता है।
भारतीय दर्शन में भक्ति परंपरा की स्थापना का प्रयास किया गया था। रामानुज, रामानंद, कबीर दास और वाल्लभाचार्य जैसे विचारकों ने भक्ति को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वाल्लभाचार्य का सिद्धांत ‘सुध्द्वैत्वाद’ है, जो भारतीय दर्शन की एक महत्वपूर्ण धारा है। उनकी शिक्षाएं भक्ति परंपरा में योगदान देती हैं।
- सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक द्वारा की गई थी, जो कबीर दास की भक्ति परंपरा से जुड़ा है। गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर दास के कई पद शामिल हैं।
- कबीर दास ने भक्ति आंदोलन को वैश्विक स्तर पर फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे रामानंद के शिष्य थे और भक्ति की सच्ची भावना को व्यक्त करते हैं।
नीओ वेदांत ने भारतीय धर्म में एकता को बढ़ावा दिया और इसे राष्ट्रीयता से जोड़ा। इसके माध्यम से हिंदू धर्म में समानता और एकता का संदेश फैलाया गया।
- नीओ वेदांत की शुरुआत ब्रह्मो समाज से हुई थी, जिसमें राजा राममोहन राय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हिंदू धर्म और ईसाई धर्म के बीच सामंजस्य स्थापित किया।
- स्वामी विवेकानंद ने नीओ वेदांत के महत्वपूर्ण विचारों को प्रस्तुत किया और इसे समझने के लिए उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जाति व्यवस्था को समाप्त करने हेतु बौद्ध धर्म को अपनाने का निर्णय लिया और नवयान का निर्माण किया।
बीसवीं सदी की यह नई परंपरा बौद्ध दर्शन को अधिक वास्तविकता से जोड़ती है और अन्य दुनिया के विचारों को अस्वीकार करती है। यह विचारों का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
- डॉ. अंबेडकर ने अजीत केशकंबली के दर्शन से प्रेरणा ली और नवयाण की स्थापना की। उन्होंने चार्वाक परंपरा से भी संबंध स्थापित किया।
- अनी बेसेंट ने थियोसोफिकल सोसाइटी के माध्यम से एक नई दार्शनिक सोच का विकास किया और जिद्दू कृष्णमूर्ति को अपनाया।
- ओशो ने ध्यान की नई परंपरा शुरू की, जिसे डायनेमिक मेडिटेशन कहा जाता है, जिससे नृत्य के दौरान ध्यान करना संभव हुआ।
आधुनिक हिंदुत्व और नैतिकता का विचार बहुत गहरा है। यह विचार न केवल जातिवाद का विरोध करता है, बल्कि सामाजिक समानता और लिंग समानता पर भी जोर देता है।
- आर्य समाज ने तर्क और तर्कशीलता पर जोर दिया है, जो इसे अन्य धार्मिक संस्थाओं से अलग बनाता है। यह जातिवाद को पूरी तरह से अस्वीकार करता है।
- आर्य समाज ने लड़कियों की शिक्ष को प्रोत्साहित किया, जो समाज में प्रगतिशील बदलाव लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- कर्म सिद्धांत में तीन प्रकार के कर्म होते हैं: संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म, और संचयमान। यह जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं।
कर्म का सिद्धांत यह बताता है कि हमारे कर्मों के परिणामों को हमें स्वीकार करना पड़ता है। यह विचार भारतीय दर्शन में आत्मा के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है।
- निर्धारणवाद और स्वतंत्र इच्छा के बीच का विवाद भारतीय दर्शन में गहरा है। इसे समझना जीवन के निर्णय लेने में महत्वपूर्ण होता है।
- शोपेनहॉवर जैसे दार्शनिकों ने यह बताया है कि मनुष्य अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सीमित होता है। यह विचार जीवन के प्रति निराशावाद को दर्शाता है।
- भारतीय दार्शनिक परंपरा में आत्मा के सिद्धांत का समर्थन करना आवश्यक है। यह कर्मों के परिणामों के लिए जिम्मेदारी का एक आधार प्रदान करता है।
भारतीय दर्शन में आत्मा का विचार महत्वपूर्ण है, जिसमें आत्मा को अमर और शाश्वत माना जाता है। हालांकि, चार्वाक और बौद्ध दर्शन आत्मा के अस्तित्व का इनकार करते हैं।
- बौद्ध दर्शन आत्मा की बजाय पुनर्जन्म पर जोर देता है, जिसमें चेतना एक प्रवाह के रूप में देखी जाती है।
- हिंदू धर्म में आत्मा को शाश्वत माना जाता है, जबकि सेमिटिक धर्मों में आत्मा की अमरता का विचार भिन्न है।
- चार्वाक दर्शन आत्मा के विचार का पूरी तरह से खंडन करता है और इसे निराधार मानता है। इसके अनुसार, केवल भौतिक दुनिया का ही अस्तित्व है।
क्रिश्चियनिटी पुनर्जन्म की अवधारणा को स्वीकार नहीं करती है। गैलीलियो ब्रूनो ने कहा कि पुनर्जन्म एक वास्तविकता है, जिसके लिए उन्हें सजा दी गई।
- गैलीलियो ब्रूनो ने 1600 ईस्वी में अपने विचारों के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। उनका मानना था कि उनकी सोच सही थी और चर्च की नहीं।
- प्रोफेसर इयान स्टीवेंसन ने पुनर्जन्म पर 40 वर्षों तक शोध किया। उन्होंने 12 किताबें लिखी, जिनमें ‘बीस मामले’ शामिल हैं, जो पुनर्जन्म के संकेत देते हैं।
- भारतीय परंपरा में पुनर्जन्म का विश्वास व्यापक है। विभिन्न धर्मों में, जैसे कि ज्यूडाइज़्म और इस्लाम में भी, पुनर्जन्म का विचार मौजूद है।
खुशी और दुःख का एक गहरा संबंध है। जीवन में खुशी की प्राप्ति, उसे बनाए रखने का प्रयास और फिर उसके खोने का दुःख सभी व्यक्ति को प्रभावित करता है।
- खुशी के बाद के तनाव और दुःख के पहलुओं का सामना करना पड़ता है। यह चिंता और असुरक्षा की भावना को जन्म देती है, जो जीवन में सामान्य है।
- भारतीय दर्शन में दुःख के तीन स्तर होते हैं: प्राप्ति का दुःख, रखरखाव का दुःख और हानि का दुःख। यह जीवन की वास्तविकता को दर्शाता है।
- मोक्ष की अवधारणा भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण है। यह जीवन के कष्टों से मुक्ति की ओर ले जाने वाला मार्ग है।
भारतीय दर्शन में धर्म और दर्शन का सहयोगात्मक संबंध है। यहाँ धर्म और दर्शन अक्सर एक साथ चलते हैं और मानव को दुखों से मुक्त करने का उद्देश्य साझा करते हैं।
- भारतीय दर्शन की नौ धाराएं और उनका धर्म से संबंध है। इनमें जैन, बौद्ध, और हिन्दू दर्शन शामिल हैं, जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
- दार्शनिकता और धर्म में अंतर पश्चिमी दर्शन में देखा जाता है, जहां दोनों के बीच का संबंध कमजोर है। उदाहरण के लिए, सुकरात और ब्रूनो की कहानियाँ।
- कर्म के सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति अपने कार्यों के परिणाम स्वयं भोगता है। लेकिन इस सिद्धांत को हर दुर्घटना पर लागू करना कठिन है।
आज की दुनिया में मानवाधिकार, महिला अधिकार और जानवरों के अधिकारों पर चर्चा बढ़ी है। हालाँकि, आणविक युद्ध और पर्यावरणीय समस्याएँ भी गंभीर खतरे बन गई हैं।
- आधुनिक समाज में अधिकारों की बहाली ने लोगों की सोच में बदलाव लाया है। यह बदलाव समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देता है।
- दुनिया में विकास के साथ-साथ पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कारक भी बढ़ रहे हैं। प्रदूषण और प्राकृतिक संतुलन में बदलाव चिंता का विषय हैं।
- भारतीय दर्शन में बहस और विचारों की स्वतंत्रता का महत्व है। यह विज्ञान और दर्शन के विकास में सहायक होता है, जो समाज को समृद्ध बनाता है।